मां जिन्दा रहतीं है बेटियों में
अपने विचार अपने संस्कारों से
अपने नियम अपने कानूनो से
अपनी मान और मर्यादाओं से।
मां झांकती है बेटियों में
उनके गुण और सौंदर्य में
उनकी हंसी और ठहाकों में
उनकी पसंद और नापसंद में।
मां झलकती है
बेटियों की गृहस्थी में
उनके परवरिश के तरीके में
उनके वाद और प्रतिवाद में।
मां मौजूद होती है
बेटियों केे चाल,ढाल में
उनके आचार और विचारों में
उनकी स्वच्छंदता और उन्मुक्तता में।
मां जीवित रहती है
बेटियों के अन्तर्मन में
चेतन और अचेतन में
उनके भावों और कल्पनाओं में।
मां दिखती है
बेटियों की रसोई में
थाली और प्लेट में
आंगन और घर की दहलीज में।
मां चिरायु होती है
वो जिन्दा रहतीं हैं हर बेटी में
साथ चलती हैं मां आजन्म
चिरकाल तक बेटियों के अनन्त सफर में।