आज की औरतें
चाय की तरह कड़क हैं
पक पक कर स्वादिष्ट हो गयीं
ज़िन्दगी जीने में माहिर हो गयीं
दूध बन कर ससुराल आयी थीं
अदरक की तरह कूटी गयीं
वो अपनी चीनी मिलाती रहीं
और तजुर्बा की आँच में
खुद को पकाती रहीं
और आज देखो सब
मजे से घर चलाती हैं
और अपना भी दिल बहलाती हैं
चालिस के पार हो कर भी
छब्बीस सी नजर आती हैं
कोई अब दूध सा उफनता नहीं
किसी का हाथ अब जलता नहीं
सब समेट लेती हैं
खुद को सहेज लेती हैं
ये उम्र दराज नहीं होतीं
उम्र को दराज में रख देती हैं
इनके बच्चे बड़े हो रहे
और ये इलायची सी महक रहीं
बूढ़े हो इनके दुश्मन
ये रोज नये नाम कर रहीं
इनका नशा कभी कम ना होता
कुल्हड़ हो या बोन चाइना
इन्हे कभी कोई गम ना होता
ये तो अदरक से भी
दोस्ती निभाती हैं
उसे अपने अंदर समा
उसका भी स्वाद बढ़ाती है
चाय की माफिक
सबकी पहली पसन्द कहलाती हैं..😃
सभी महिलाओं को सादर समर्पित..❤🍫